श्री आईजी मंदिर नारलाई

नारलाई नगर के उत्तर-पूर्व में बैठे हुए हाथीनुमा एक विशाल एक सुंदर पर्वत है जो जैएकलिंगजी पहाड़ के नाम से जाना जाता है। इसके लगभग बीच में एक अधर गुफा में भगवान शिव का एक छोटा सा मंदिर था। जैएकलिंगजी के पर्वत की अधर गुफा में शिव मंदिर भी जैएकलिंगजी मन्दिर के नाम से जाना जाता है। एकांत तथा तपस्या हेतु उपयुक्त स्थान जानकार जीजी इस गुफा में पधारी तथा अहोरात्र तपस्या में लीन रहने लगी। शिव शक्ति की अखण्ड साधना व आराधना प्रभावित होकर जीजी के दर्शनार्थ अनेक दर्शनार्थी वहाँ आने लगे। जी जी ने सगुण-निर्गुण रुप से समन्वय के लिए अखंड ज्योति जलाकर लोगों को तमसो माँ ज्योतिर्गमय तथा ईश्वरतत्व की अनुभूति हेतु प्रेरित किया। संवत् 1472 मैं एक मणि का अवतरण इस पृथ्वी पर हुआ तथा भी भी इस धर्म की माला में एक मणि के रूप में शोभायमान है। इस मणि का नाम हैं। भगवती श्री आईजी। भगवती श्री आईजी धर्म का अवतार कहलाती है। नवदुर्गा के रूपों में इनकी भक्ति कि शक्ति पूजा को सिद्ध करने के कारण इन्हें अनेक भक्त जोगमाया यस योगमाया भी कहते हैं। पारम्भिक अवस्था में मनुष्य मात्र से ही जैसा व्यवहार करने के कारण यह जीजी माता दी कहलाती है। श्री आईजी माता दी कहलाती है श्री आईजी कहलाती है श्री आईजी द्वारा प्रज्जवलित ज्योति की लौ से केसर झरता है अंत: इनका नाम केसरदात्री भी लोग प्रसिद्ध है। श्री आईजी ने ईश्वर का निराकार में साकर उपासना की। इन्होंने ओंकार को ध्यान का मुख्य आधार बनाया तथा ध्यान के शिखर पर पहुंचकर आनंद का का ध्वज फहराया। मनुष्य की आचरण की शुद्धता के लिए इन्होंने ग्यारह नियमों का दर्शन प्रस्तुत किया तथा इस दर्शन को लौकिक रुप से एक कच्चे धागे (जो ग्यारह कच्चे तागों से बना होता है) ग्यारह गांठ लगाकर बांधने का संदेश दिया ताकि आचरण रुप नीति महल हमेशा मजबूत बना रहे। इसके अनुयायी डोराबन्ध कहलाते हैं। श्री आईजी ने “तमसो मा ज्योतिर्गमय” के सिद्धांत को लौकिक रुप से उनके धार्मिक स्थलों पर अखंड ज्योति प्रकट कर आत्मा ज्योति को जीवन ज्योति के रूप में प्रस्तुत किया है । भगवती श्री आईजी इस कारण जागती जोत कहलाती है। इनकी दर्शन जागती जोत दर्शन है । जीजी के अधिकधिक लोगों को कल्याण करना था अंत: देवनगरी नारलाई के जैएकलिंगजी पहाड़ की अधर गुफा में अखंड ज्योति प्रज्वलित कर इस स्थान से पूर्व उत्तर की ओर मेवाड़ राज्य के एक छोटे से गांव डायलाणा पधारी। गोड़वाड़ की पावन धरा की देसूरी तहसील के नारलाई गांव में केशरदात्री भगवती श्री जैकलजी आईजी माता का धाम है। श्री जैकलली आईमाता का मंदिर एक हाथीनुमा आकर पहाड़ पर स्थित है। इस पहाड़ की ऊंचाई भूमि तल से लगभग 800 फुट ऊँचाई पर है। इस पहाड़ के बीचो-बीच एक अधरगुफा में श्री जैकलली आई माता का अंति प्राचीन मन्दिर बना हुआ है । जिनकी जमीन से 250 फुट ऊंचाई है। मुख्य मंदिर तक जाने के लिए दो सीढीनुमा (नाल) मार्ग बनाए गए हैं। जिसमें आने जाने की सीढिनुमा मार्ग है। इस मार्ग पर लगभग 225 सीढीयाँ ( पावली ) का निर्माण कराया गया है । मंदिर में प्रवेश के लिए भव्य प्रदेश द्वारा बनाया गया है जिस के एक और जती की वंशावली और दूसरी और मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का शिलालेख लगाया गया है । साथ ही आई माता के ग्यारह डोरबन्धु सूत्र नियमों के अलंकृत स्वागत प्रवेश द्वारा निर्माण कराया गया है। जिस पर इन नियमों को मानने का संदेश दिया गया है। अधरगुफा की लगभग 3 किलोमीटर तक परिक्रमा लगाई जा सकती है। मुख्य मंदिर का निर्माण 3 खंड में किया गया है। प्रथम खंड में श्री जैकलली आईमाता सेवा समिति नारलाई का कार्यालय का निर्माण कराया गया है। द्धितीय खंड में श्री आई माता के जीवन चरित्र के वर्ण को दर्शनों के लिए भव्य जीवन दर्शन चित्र सहित प्रदर्शनी को बनाया गया है।

श्री आईमाता के उपदेश और चमत्कार को इस प्रदर्शनी में अलंकृत किया गया है। तृतीय खंड में मुख्य आईमाता की अखंड ज्योत का साक्षात दर्शन है। जिसमें से केसर का निर्माण होता है यह कोई चमत्कार से कम नहीं या आई माता का सभी भक्तों पर अपना आशीर्वाद स्वरुप रुप है। अखंड ज्योति के पास अति प्राचीन श्री जैकलजी महादेव का शिवलिंग वह मूर्ति है। जो इसकी प्राचीन का साक्षात प्रणाम है । पास में कई छोटे-मोटे मंदिर बनाए गए हैं जिस पर जिस में श्री आईमाता के पाट, गणेशजी ,लक्ष्मी जी ,सरस्वती जी, हनुमान जी, शनिमहाराज के मंदिर है। भजन कीर्तन,आरती के लिए भव्य हांल का निर्माण भी किया गया है। जिस की मीनाकारी व कलात्मक स्वरूप का कोई सानी नहीं है। हाँल के गुमन्ज पर कभी शानदार कलाकारी का नमूना दर्शाया गया है । वह मुख्य मंदिर के पास ध्यान के लिए एक कुटिया का निर्माण किया गया है । जिसमें भंवर महाराज (फूलबाबा) आई माता का स्मरण करते हैं । मंदिर परिसर में एक भोजनशाला का निर्माण करवाया गया है। जिसमें हमेशा श्रृद्धलुओं के लिए भोजन की व्यवस्था होती है । साथ ही विशाल हॉल का निर्माण भी कराया गया है जिस में भजन संध्या और धर्म सभा का आयोजन किया जाता है। भक्तजनों की सुविधा के लिए 10 शौचालय का निर्माण भी कराया गया है। पानी पीने के लिए प्याऊ भी बनाई गई है जिस से भक्तजन ठंडा पीने का पानी भी पी सकते हैं। पक्षीयों के दाने के लिए एक बड़े चबूतरे का निर्माण भी कराया गया है जिसमें कई सैकड़ों की संख्या में प्रतिदिन पक्षियों के लिए दाने की व्यवस्था श्री जैकलली आई माता सेवा समिति नारलाई के द्वारा की जाती है। आकाल की स्थिति में पानी की कमी को रोकने के लिए श्री आई माता का जलकुंभ के नाम से 5 भूमिगत होद का निर्माण किया गया है। जिस में बारिश के पानी को सग्रहित किया जाता है। मंदिर के अंतिम ऊंचाई पर विशाल त्रिशुलनुमा हवन कुंड का निर्माण कराया गया है। हवन कुंड के चारों ओर स्टील की परिक्रमा बनाकर विशाल त्रिशूल का निर्माण कराया गया है । इस हवन कुंड की बनावट इतनी सुंदर स्वरूप की गई है कि हवन करने पर यहा भगवान के साक्षात स्वरूप के दर्शन होने का अनुभव होता है। इस मंदिर के एक-एक पत्थर पर इतनी बारीकी से मीनाकारी और कलात्मक छवी को अलंकृती किया गया है कि जो हर किसी को मनमोह लेती है । यहाँ केवल हजारों की संख्या में भारतीय बल्कि विदेशी पर्यटक इसकी कलात्म स्वरुप के दूर दूर से आते हैं । यह मंदिर धार्मिक आस्था सही है नहीं बल्कि अपनी कलात्म स्वरुप से भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाता है इस मंदिर की प्रसिद्धि न केवल गोडवाड बल्कि समूचे भारतवर्ष में हिंदू संस्कृति उदाहरण है। श्री जैकलली आई माता धाम मंदिर की देखरेख के लिए सन् 2007 में श्री जैकलली आई माता सेवा समिति (सीरवी समाज) नारलाई का निर्माण किया गया है। जिस की अध्यक्षता श्री जती भगाबाबा कर रहे है। उपाध्यक्ष के रूप श्री भंवर महाराज उर्फ फुलबाबा कर रहे है। वह मुनीम के रूप में धन्नाराम को कार्यभार दिया गया है। जिनकी देखरेख में मन्दिर का विकास कार्य प्रगति चल रहा है । तथा बहुत कम समय में इस समिति ने अपने कामों का लोहा लेकर इस मंदिर को गोंडगांव ही नहीं बल्कि समूचे भारत में प्रसिद्ध कर दिया है। इस कारण आज यहां कई धार्मिक कार्यक्रम हजारों की संख्या में दूर-दराज से या दर्शन हेतु पधारें तथा समिति द्वारा उनके रहने और खाने की उत्तम व्यवस्था की जाती है।

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