हाम्बडो़-की-डांग-बिलाड़ा

“डांग मोटी हाम्बड़ो री ,पुरखो रो इतिहास” ईश्वर विभिन्न रुपों में धरती पर अवतार लेकर अपने भक्तो को समय समय पर अनेक चमत्कार दिखाकर उन्हें जहाँ एक तरफ कृतार्थ करते हैं।वही उनके द्वारा बताए गए चमत्कार व उनसे जुड़े स्थान व सम्बंधित वस्तुएँ भावी सन्तति के लिए सदैव ही पूजनीय व नमन योग्य बन जाती हैं।मानव जाति श्रध्दा भक्ति भावना के प्रवाह में बहती हुई उनकी आराधना-स्तुति कर अपने पूर्वजों की भाँति इन देवी-शक्तियों से पुन:चमत्कार पाने की अभिलाषा अपने मन में संजोते हैं। बिलाड़ा शहर में बढेर चौक से पहले प्राचीन समय के खारड़ा बेरे के समीप जहाँ वर्तमान मे जनसहयोग से बालिका महाविद्यालय का विशाल भवन बन रहा है।इसके प्रवेश द्वार के ठीक सामने एक काले सफेद पत्थर बड़ी लम्बी स्तम्भाकर डांग खड़ी है। जिसे ‘हाम्बड़ौ की डांग’ कहकर पुकारा जाता है।इस डांग के बारे में स अनेक अनुश्रुतिया प्रचलित हैं। कहते है अम्बापुर अवतारी मां अनेक स्थानों पर अपने दिव्य चमत्कार दिखती हुई पतालियावास से संवत् 1521में वृद्धा रुप धारणकर अपने पोटीये के साथ बलिपूर पधारी तो वे सबसे पहले नगोजी हाम्बड़ की पोल मे आश्रय व रात्रि-विश्राम हेतू पहुँची। खारड़ा बेरा नगोजी हाम्बड़ का ही था।उस समय नगोजी हाम्बड़ लक्ष्मी की असीम कृपा’कृपा’बलिपूर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।धन की स्वाभाविक वृति है कि व्यक्ति को अहंकारी बना देता है।नगोजी को धन दौलत व समृध्दि का अभिमान था। उन्होनें मां श्री आईजी का स्वागत सत्कार करना तो दूर बात उल्टे उन्हें भला बुरा कहना शुरु किया।तब माताजी ने कहा कि-नगोजी!ईश्वर की कृपा से तुम्हारे पास धन दौलत खुब हैं,तुम्हारे में विनम्रता व उदारता होनी चाहिए।घर आए का सत्कार व मान-सम्मान के साथ सेवा करना ही मानव का ध्येय होना चाहिए।इस पर नगोजी हाम्बड़ ने माताजी को अपने घर आंगन से चले जाने को कहा।जाते समय माताजी ने नगोजी को अभिशाप दिया कि जिस धन समृध्दि पर तुम इतने इतराते हो और मानव धर्म को भुल रहे हो,वह धन सब कंकड़-पत्थर व कोयला बन जायेगा। गायें भेसे रोजड़ो के रुप में बदल जायेंगे।माताजी वाणी सार्थक हुई।नगोजी का धन-वेभव नष्ट हो गया जहाँ आज हाम्बाड़ो की डांग खड़ी है कहते है कि माताजी ने इसी स्थान पर अपना पोठिया बाँधा था।डांग अभिशाप के प्रतीक के रूप में हैं।इसके पास आज एक पीपल का पेड़ खड़ा है।डांग के समीप ही पहले खारड़ा नामक कुआँ था।जो हाम्बाड़ो का पेतृक कुआँ और के पेयजल का एक प्राचीन स्त्रोत के रुप में जाना जाता था।लोग मानते है कि माताजी का अनादर करने से नगोजी हाम्बड़ का सारा धन वेभव समाप्त हो गया था।यद्यपि नगोजी हाम्बड़ को शीघ्र ही अपनी भुल का अहसास हो गया था और वे माताजी के पास गए और क्षमा याचना की।माताजी ने उन्हें कोटवाल पद दिया और अपने पास रखा।नगोजी की पुत्री सोढ़ी,जो माताजी की सेवा में रहती थी,जिसका विवाह भी माताजी की आज्ञा से जाणोजी के पुत्र माधवजी के साथ किया गया।

 

नगोजी को माँ आईजी द्वारा जो अभिशाप मिला,उसके साक्ष्य रुप में सदियों से खड़ी यह डांग,जिसे अपने पूर्वजों के रुप में मानकर आज भी हाम्बड़ गौत्र के स्त्री पुरुष इन्हें नमन करते हैं।स्त्रियाँ तो यहाँ आते समय घूंघट निकालकर व जुते हाथ में लेकर पेदल चलकर अपने पूर्वजों के उस अतीत को याद करते हैं,जब नगोजी हाम्बड़ की गवाड़ी सबसे धनाढ़्य व सम्पन्न थी।यहाँ रहा खारड़ा बेरा भी वर्षो तक अपने गौरवशाली अतीत का गौरव गान सुनाता रहा।आज इस डांग के चारों तरफ एक पक्का संगमरमर का ‘चबूतरा’ बना कर हाम्बड़ गौत्र ने अपने पूर्वजों के प्रतीक के रूप में विद्यमान इस विरासत को अक्षुण्ण रखा है।नगोजी हाम्बड़ द्वारा सत्कार नहीं करने पर माँ श्री आईजी जाणोजी राठौड़ की गवाड़ी पहूँची।वहाँ स्वागत सत्कार और आत्मीय स्नेह मिलने पर माताजी जाणोजी के घर पर ही रहने लगे। अतिथी सत्कार जाणोजी राठौड़ के लिए जीवन में सुख वर्षक बना।उनका खोया पुत्र माधव मिला।लेकिन भावी संतति को यह डांग आज भी यह संदेश दे रही है कि धन दौलत व सुख एश्वर्य में अभिमानी बनकर यदि मनुष्य दीन-दू:खी वृध्द असहाय की सेवा करने के मानवीय कर्तव्य से विमुख होता,तो उनकी दशा भी डांग जेसी हो जाती है।

 

बीते समय के वेभव को किस प्रकार देवी शक्तियों का कोप भोजन बनना पड़ा,इसका प्रत्यक्ष दर्शन आप हाम्बड़ो की इस डांग में कर सकते है।अपने पूर्वजों के प्रति आज भी हाम्बड़ गौत्र परिवार अटूट श्रध्दा भाव रखते हैंऔर उस अहम भाव से निज को परे रखकर मानवीय सुकृत्य की दिशा में अपनी जीवन रुपी गाड़ी को हाँकते है। आशा है कि श्रध्दालू इस डांग से दिव्य प्रेरणा लेकर अपने जीवन को एक संस्कारित सुरभित दिव्य पुष्प बनाने की ओर हमें चिंतन को बढ़ायेगे।

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