बाण गंगा बिलाड़ा

बिलाडा़ एक ऐतिहासिक नगर है सतयुग में हिरणाकश्यपु का वध करने भगवान नरसिंह रूप में इसी बिलाडा़ स्थान पर प्रकट हुए थे बाद में उनके पुत्र पुत्र प्रहलाद पौत्र विरोचन ने बिलाड़ा से ही अपने राज्य का संचालन किया था। राजा विरोचन की मृत्यु के समय उनकी नौ रानियां उनके साथ सती हुई जिनकी समाधियां मौजूद है जिसकी यादगार में आज भी नौ सत्तियों का मेला चेत अमावस्य को हजारों वर्षों से बाणगंगा पर लगता हैं। राजा बलि की मां के चुकी पेट में गर्भ था उनहें सती नहीं होने दिया गया। उनके जो पुत्र हुआ दानवीर राजा बलि के नाम से विख्यात हुए तथा अन्त में जब स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल का राज उनके पास आ गया तब उन्होंने एक राजसुय यज्ञ का आयोजन रखा तथा गंगा को आमंत्रित करने हेतु जमीन पर बाण चलाया और उससे बाणगंगा नाम की नदी प्रगट हुई। तब से यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल बना हुआ है दीवान गोविंददासजी से लेकर कागण माताजी से पूर्व  सभी दीवान पद वालों का समाधि स्थल बाणगंगा ही रहा है।  दीवान रोहितदासजी का व उनके बड़े भाई चौथजी का अंतिम संस्कार कुण्ड के एक किनारे किया गया था। उनकी उनके भाई चौथजी की याद में बिल्कुल एक जैसी छतरियां बनी हुई हैं। 400 वर्ष पूर्व बनी छतरियों में काफी टूट-फूट आ गई थी। बाणगंगा तीर्थ स्थल पर मेले के अवसर पर आने वाले तीर्थ यात्री सिद्ध पुरुष दीवान रोहितदास जी को याद कर श्रद्धा से नमन करते हैं बाल गंगा के घाट बिल्कुल समीप बनी होने से उन महान सिद्ध पुरुषों की पावन स्मृतियों की याद ताजा हो जाती है एवं आत्मा में एक प्रेरणा शक्ति धर्म पर चलने की क्रियाशील हो जाती है। वर्ष 1993 की बाढ़ के समय इस समाधि स्थल (छत्री)  का कापी हिस्सा, नीचे का, ध्वस्त हो गया जिससे स्व. माझीसा राजकुंवरजी जालीजी बढेर बिलाडा़ द्वारा इसका भी जीर्णोद्धार करवाया गया। इसी प्रकार चौथजी की छतरी भी काफी क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसे चौथ वाले राठौड सीरवी (जो चौथजीवाला) के वंशज है तथा बिलाडा में आज उनके करीब 100 घर हैं, उन्होंने प्रति घर चंदा एकत्रित किया तथा बढेर के दक्षिण में स्थित चौथजी का बास का अधिकांश भूमि आईजी विद्या मंदिर  को नि:शुल्क दी, कुछ बढेर देवस्थान को अर्पण की जहां नई धर्मशाला बनाई गई है, तथा अभी आर.डी.डी.एस स्कूल का संचालन हो रहा है तथा भेंट रूप में जो राशि मिली है उस राशि में कुछ राशि और जोड़कर चौथजी की छतरी की पूरी तरह से मरम्मत करवाई गई। खोदने पर नीचे चबूतरे से चार तहखाने भी मिले थे। आज भी लोग बड़ी श्रद्धा वहाँ दर्शन करते हैं।

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