दीवान श्री रोहितदासजी का जोड़ एक ऐतिहासिक स्थल

बिलाड़ा नगर में पश्चिम दिशा की ओर 6 किलोमीटर की दूरी पर बड़ा अरट से आगे ऐतिहासिक “जोड” स्थल, बिलाड़ा नगर के पावन ऐतिहासिक पूज्य स्थलों की श्रंखला में दीवान रोहितदासजी का चमत्कारी स्थान है यहां पर जोधपुर के तत्कालीन नरेश मोटा राजा उदयसिंहजी को परचा दिया गया था। जोधपुर दरबार के लोग रोहितदासजी को जेल में हथकड़ी नहीं लगा पाए तथा इधर बिलाड़ा में साढे़ सात वीसी 7 1/2X20+1=150 सीरवीयों ने आत्मबलिदान कर दिया तो घबरा कर दरबार में रोहितदासजी को बुलाकर माफी मांगी तथा भेंट स्वरूप बिलाड़ा का आधा जोड व पिपलिया बेरा अर्पण किया ।

मेरा पिपलिया एवं आधा जोड का स्थल माताजी वास्ते उन्हें भेंट किया इस पर एक दोहा प्रचलित हैं –

पीपलियो दियो पायतो आधो दीनो जोड ।
भानो भंडारी यू कहे मत करो रोहिता पीरा री होड ।।

जोधपुर नरेश ने भू प्रबंध वालों से जोड़ की जमीन माप कर आधी कर मुड्डे लगाने को कहा तब रोहितदासजी ने कहा इसकी जरूरत नहीं, जहां से मेरा घोड़ा दौड़ेगा उस स्थान पर पगडण्डी हो जाएगी । उस स्थान पर घास नहीं उगेगा । पगडण्डी के पूर्व की ओर के घास पर छिणगा नहीं आवेगा यानी घास मोडा ही उगेगा वो जोड दीवान साहब का जोड कहलायेगा । दूसरी और पगडण्डी के पश्चिम की और राज के जोड में घास पर छिणगा (तुरा) आएगा वह दरबार का जोड कहलायेगा । यह पर्चा आज भी कायम है जोड में पूर्व में स्व माजीसा द्वारा एक छोटी सी छतरी का निर्माण वर्षों पूर्व करवाया गया था उसके पास ही प्राचीन नीम का पेड़ विद्यमान है जिसके पत्ते आज भी कड़वे न होकर मीठे है यह भी साक्षात चमत्कार ही है । जोड से एक रास्ता सीधा जीजी पाल मंदिर जाता है । इस स्थान पर बाबत् आस्था से लोगों में लंबे समय से रही हैं कुछ भावुक लोगों को रात के समय आकाश में बिलाडा बडेर से ज्योति निकलकर जोड रोहितदासजी के स्थान तक जाती दिखाई पड़ती है। वहां लोगों की मनोकामना पूर्ति होती है । अब इस स्थान का उदा आया तब इसे सड़क से जोड़ दिया गया है तथा 115 बीघा का ओरण भी कर दिया गया वहां वृक्षारोपण कर सुन्दर स्थान बनेगा । आसोज सुद 2063 मे श्री प्रेमा बाबाजी जो गुजरात प्रांत के हैं उन्होंने यहां नवरात्रि की ।

अगस्त 2006 में लिम्बा महाराजा मध्यप्रदेश के मनावर तहसील के गुलाटी ग्राम के हैं तथा लम्बे समय से त्यागी है यहां आए तथा गोपालसिंहजी के कहने से अपनी माता को साथ लेकर यहा पूजा करने के लिए आ गए तब से विधिपूर्वक यहां पूजा हो रही है । पूर्व चबूतरे के चारों तरफ नौखड़ी बेरा के उमोजी बर्फा बेरा निम्बड़िया ने लोहे की जाली लगवाई । उसके बाद दीवान माधवसिंहजी के पुत्र श्री कृष्णसिंहजी ने अपनी खान के पत्थरों से यह छत्री निर्माण करवा कर लगवाई । इसके पड़ोस में जो हाल हैं उसे कोलारामजी, तुलसारामजी, बाबू, पुत्र श्री चेनारामजी राठौड़, मनोहरलाल पुत्र श्री बाबूजी गारीया के सहयोग से निर्माण हुआ । टांका का निर्माण श्री बाबुलालजी गारीया की देखरेख में दीवान साहब द्वारा 1996 में बनवाया गया । इसे सन् 2005 में जोड के बेरे से 8 इंच की पाइप लाइन से जोड़ दिया गया । साल के ऊपर दूसरी मंजिल में हुकमारामजी पटेल द्वारा सारे घड़ाई के पत्थर तथा प्रभूलालजी‌ लखावत द्वारा एक ट्रक फाचरा निशुल्क दिया गया । छतरी के पास ऊपर व नीचे के चबूतरे में मकराना के पत्थर श्री हरजीरामजी तथा भीयारामजी पुत्र श्री जोगारामजी राठौड़ मेरा नौकड़ी (पूर्व में चौधरी का आट) द्वारा लगवाये गये । साल में बड़ी लोहे की जाली लगी हुई है वह बडेर बास द्वारा निशुल्क भेंट मे दी गई है ।

लेखक: प्रभुलाल लखावत (पुर्व मैनजर) जोधपुर केन्द्रीय सहकारी बैंक लि. एवं लालुराम मुलेवा – पुर्व अध्यापक शिक्षा विभाग राजस्थान सरकार यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए पुस्तक – युगपरुष दीवान रोहितदासजी

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