श्री रोहितदासजी की धूणी व सांकल का महत्व

दीवान कर्मसिंहजी के ग्रामधाकड़वास में हसूनकुली से संघर्ष करते बलिदान होने पर बिलाडा बढेर का प्रांगण जोधपुर रियासत के अधीन आ गया था। सतलाना से आने के बाद 12 वर्ष दीवान रोहितदासजी ने बेरा रनिया पर तपस्या की थी जोधपुर दरबार द्वारा प्रसन्न होकर आधा जोड व बेरा पीपलिया देने तथा बढेर का प्रांगण वापस रोहिदासजी को सौंपने के बाद रोहितदासजी बिलाडा बढेर में जमीन के नीचे एक स्थान बनवाया था वहां तपस्या चालू रखी। आई माताजी मंदिर के अंदर जो सांकल लगी हुई है व पूर्व में इस धुणी में ही लगी थी। दीवान रोहितदासजी ने अपनी चोटी इसमें बांध-कर घोर तपस्या की थी। रोहितदासजी की धूनी के अंदर से देखते हैं तो उसके निर्माण में पत्थर काम में लिए गए हैं उन पर जैन समुदाय के भगवान रिषभदेव तथा महावीर स्वामी की मूर्तियां बनी हुई है जो आज भी विद्यमान है यह धुणी का स्थान का दरवाजा पूर्व बंद था। सीढ़ीयों पर पत्थर की दाब लगी हुई थी। स्व. लुम्बा बाबाजी को कोई 25-25 वर्ष पूर्व प्रेरणा हुई कि इस स्थान पर धुणी है उस समय बढेर ठिकाने में नाबालगी थी। कोर्ट आॅफ वार्ड ( कलेक्टर जोधपुर) का नियंत्रण था। वहां के मैनेजर लगे थे उन्होने मना कर दिया तो लुम्बा बाबाजी अनशन पर बैठ गये। 7 दिन अन्न जल त्यागने के बाद यहां का मैनेजर माजी साहब के कहने से जोधपुर गया तथा कलेक्टर जोधपुर की आज्ञा ले 5 मोजीज व्यक्तियों के समक्ष कारीगरों द्वारा इस धुणी का पत्थर हटवाया तो अन्दर सिर्फ धुणी थी उसमें राख थी, उसे बाहर लाया गया तथा बाणगंगा में प्रवेश की गई। उसके कुछ पूर्व सीढ़ीयों को ठीक कर इस धुणी को जनता के दर्शन हेतु दीवान माधवसिंहजी द्वारा खोला गया। इस धूणी के ऊपर तीन मंजिल भवन है जिसे रोहितदासजी का महल कहा जाता है।

आज रोहितदासजी को 400 वर्ष से अधिक पूरे होने आ रहे हैं फिर भी धुणी में जाते हैं और वहां दो मिनट बैठते हैं तो मन एकदम शांत हो जाता है।

रोहितदासजी के महल में बहुत ही सुंदर झरोखे तथा ऊपर गुम्बद जो पत्थरों को काट-काट कर बनाया गया है वह बहुत ही दर्शनीय है।

पूर्व में पहली तथा दूसरी मंजिल की छत लकड़ी की बनी हुई है, जो कालांतर में सड़कर गिर गई। कुछ समय पूर्व से वापस पक्की छीणों की छत व सीढ़ियां बनाई गई, बाहर की दीवारें उसी समय की है। पीछे की तरफ एक कमरा है तीसरी मंजिल पर था उसे उतारना पड़ा। वर्तमान समय में दीवान माधवसिंहजी ने रोहितदासजी के महल की तीसरी मंजिल बनवाई है और सुंदर झरोखे का निर्माण भी करवाया है इससे महल की सुंदरता और बढ़ गई है।

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