जीजी श्री आई माताजी के डायलाणा में चमत्कार

जेठ आषाढ़ का महीना था सूर्य की तेज गर्मी शारीर को झुलसा रही थी। ऐसे में माँ जीजी नारलाई से भयंकर गर्मी में अपने नन्दी को साथ लेकर आई पंथ के प्रचार के लिए गाँव-गाँव उपदेश देती घूम रही थी। माँ जीजी घूमती-घूमती गाँव डायलाना आ पहुंची। भयंकर गर्मी एवं प्यास लगने के कारण माँ जीजी थक गई थी। वह खेतों में हल चला रहे किसानों के पास पहुंची तब वहाँ और आस-पास के खेतों में हल चला रहे किसान माँ जीजी के पास एकत्र हो गये और उनकी कुशलक्षेम पूछी। खेतों के आस-पास कोई वृक्ष माँ जीजी के विश्राम के लिये छाया की। माँ जीजी ने किसानों से कहा मुझे एवं नन्दी को बड़ी प्यास लगी हैं। किसान बोले माताजी आपके पिने के लिए तो हमारे पास जल है, परन्तु नन्दी को पानी पिलाने बहुत दूर ले जाना पड़ेगा। क्योंकि यहाँ आस-पास के तालाब में पानी नहीं है। जीजी ने हँसते हुए कहा यहाँ पानी की कोई कमी नहीं है। आप लोग झूंठ क्यों बोल रहे है ? किसानों ने हाथ जोड़कर कहा, माताजी हम सच कह रहे हैं। यहाँ पानी की बड़ी भारी कमी है। आस-पास के कुओं एवं तालाब में पानी सुख गया है। हम बड़े दुःखी है। जीजी ने कहा नन्दी को साथ ले जाकर देखो मुझे तो तुम्हारे तालाब में खूब पानी दिखाई दे रहा हैं। किसानों को माँ जीजी के शब्दों पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन नन्दी को साथ लेकर पानी पिलाने गये तो देखा कि तालाब पानी से लबालब भरा हुआ था। वे खुशी से झूम उठे, वे दौड़कर माँ जीजी के चरणों में प्रणाम करने लगे। जीजी के चमत्कारों के बारे में पहले से चर्चा सुन रखी थी, परन्तु डायलाणा में जीजी के चमत्कार की बात जंगल में आग की भांति शीघ्र ही सारे गाँव में फेल गई । लोग माँ जीजी के दर्शन करने के लिए खेत में आने लगे। किसानों ने माँ जीजी को गाँव में चलने की प्रार्थना की। जीजी ने कहा में यहीं पर रात्रि विश्राम करुँगी। तुम लोग अपने घर जाओ। देर रात्रि तक जीजी के उपदेश सुनकर सभी लोग अपने-अपने घर लौट गए। प्रातः जल्दी ही स्त्री-पुरुष एवं बालक माँ जीजी के दर्शनार्थ उमड़ पड़े, तो उन्होंने जो चमत्कार देखा तो देखते ही आँखे खुली की खुली रह गई। जिस स्थान पर किसान लोगों ने अपने हल खड़े कर जीजी के विश्राम के लिये छाया की थी उस स्थान पर एक बड़ा छायादार बड़ का वृक्ष खड़ा था। उस बड़ के वृक्ष पर रिहिण का भी छोटा सा पेड़ खड़ा था। सभी के मस्तक श्रद्धा पूर्वक माँ जीजी के चरणों में झुक गए डायलाणा में आज भी सदारण बेरा पर बड़ का वृक्ष खड़ा है। यहाँ पर माँ जीजी द्वारा स्थापित अखण्ड ज्योत आज भी जलती है। माँ जीजी ने यहाँ कई दिनों तक विश्राम किया एवं यहाँ के लोगों को अपने उपदेशों से लाभान्वित कर अपना अनुयायी बनाया। यहाँ प्रितिवर्ष जेठ महीने में भव्य मेला लगता है।

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