श्री जीजी पाल मंदिर बिलाड़ा

मोजरी की बनी पाल जीजीपाल-पतालियावास-बिलाड़ा  भारतवर्ष की पावन धरा जहाँ एक तरफ अपने सुरम्य प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जग-विख्यात है, वहीँ दूसरी तरफ इसके चप्पे-चप्पे पर स्थित विभिन्न पावन तीर्थ-स्थल इसके देव-भूमि होने के साक्ष्य हैं। जहाँ-जहाँ पर भी अवतारी दैवीय-शक्तियों के पाँव पड़े, वह भाग मानव-जाती के लिए सदा वन्दनीय हो गया। जिस-जिस क्षेत्र में देवीय शक्तियों ने अपने चमत्कार बताए, उन चमत्कारों के प्रतीक चिन्हों पर आज भी मानव जाती अपनी श्रद्धा और भक्ति के पुष्प अर्पित कर अपने को धन्य मान रही हैं! गुजरात राज्य के अम्बापुर गांव में बीकाजी डाबी के घर एक कन्या के रूप में जीजी श्री आईजी ने मांडू के अत्याचारी शासक महमूद खिलजी का मान-मर्दन करने के बाद वृद्धा रूप धारण कर माँ जीजी अपने संग पोठिया और कुछ ग्रन्थ लेकर नारलाई, डायलाणा, भैंसाणा, सेवाज,बगड़ी,सोजत,अटबड़ा, बेलावास आदि स्थानों पर दिव्य चमत्कार बताती हुई बिलाड़ा क्षेत्र में प्रवेश करती हैं। देवी-शक्तियों की वचन-सिद्धि के कारण कई चमत्कार और अदभुत रचनाओं के बारे में तो बहुत सी जानकारी मिलती है और सुनते भी है। लेकिन यदि देवी-शक्ति से पैरों की मोजरी की रेट से यदि वहां पर एक लम्बी-मोटी रेट की पाल मेढ़ बन जाती है, तो वह आपने आप में एक अव्दितीय चमत्कार मना जाता हैं। ऐसा हैक दिव्य चमत्कार माँ जीजी ने बलीपुर बिलाड़ा में प्रवेश से पूर्व पतालियावास में दिया। जहाँ माँ जीजी के पैरों की मोजरी में भरी हुई रेत को एक भक्त द्वारा झारने पर सुबह उस स्थान पर एक लम्बी मोटी पाल सी बन गई। जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं और माँ जीजी के चमत्कारों की ज्वलन्त कहानी आज भी कह रहे हैं! वैसे तो पाल किसी भी भू-भाग को चारों तरफ से घेरने के लिए बनाई गई रेत मिट्टी की ऊँची और मोटी दीवार को कहते हैं। जैसे किसी बाँध और तालाब को बनाने के लिए हजारों लोगों के शारीरिक पतिश्रम से मिट्टी डालकर पाल मेड़ बनाई जाती हैं।

ऐसी ही एक पाल जीजी पाल बिलाड़ा से लगभग 7 किलो मीटर दूर दक्षिण दिशा में पतालियावास के पास स्थित हैं। जो मात्र मोजड़ी में भरी धूल रेत को झारने से ही बन गई।

इस जीजी पाल के बारे में ऐसी कथा प्रचलित है कि नव दुर्गावतार माँ भगवती श्री आईजी जीजी जब बिलोजी सीरवी बिलावास को मुंह मांगा वरदान देकर आगे भ्रमण करती हुई पतालियावास आई। जहाँ पर सीरवी जाति के लोग बहुत बड़ी संख्या में रहते थे। पतालियावास के आस-पास छोटी-छोटी पहाड़िया होने तथा बालू जमीन होने के कारण वर्षा के पानी से मिट्टी बहकर फसलें उजड़ जाने से किसान बड़े दुःखी थे। मिट्टी के बह जाने से भूमि पथरीली और बंजर सी हो जातीं थी। किसान अपने खेतों के चारों तरफ मेड़भी बनाते थे। लेकिन तेज वर्षा से उनका प्रयास पल भर में ही बेकार हो जाता था। जब माँ जीजी यहाँ पधारी, तब किसानों ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। माँ जीजी ने किसानों के अनुनय-विनय को स्वीकार करते हुए यहाँ रात्रि विश्राम किया। तब किसानों ने अपना सारा दुःख माँ जीजी को बतलाया और कहने लगे-

मैया बड़े दुखी हैं किसान सारे, मिट्टी सारी बह जाती है।
तेज वर्षा से उपजाऊ धरती, पथरीली बंजर बन जाती है।।

 

जीजी ने उनकी व्यथा सुनकर किसानों को धैर्य धीरज दिलाया। पहले, आज की तरह पक्की सड़कें तो थी नहीं। केवल पगडंडियाँ और उबड़-खाबड़ रास्ते ही थे। ऐसे ही रास्ते से होती एक बड़ा वरदान स्वरूप किसानों को दिया चमत्कार ही था। अचानक पाल बनी देखकर किसान ख़ुशी से नाच उठे। जैसा कि यह दोहा कह रहा है –

 

“किसान खुशी से झूम उठें, देख अचानक पाल। माँ जीजी का चमत्कार यह, लोग कहें जीजी पाल।।”

 

इस पाल से वर्षा का सारा पानी रुक गया और फसले अच्छी होने लगी। जिससे यहाँ पर काफी लोग आबाद होने लगे। माँ जीजी के आशीर्वाद से यहाँ पानी की कोउ समस्या नहीं रही। यहाँ के कुओं का पानी मीठा और खेती-बाड़ी के लिए बहुत उपयोगी हैं। पतालियावास के आस-पास के बेरों पर भरपूर फसलें होती है। यहाँ के सीरवी व अन्य जाती के किसान भी धनाढ्य हैं। यहाँ माध्यमिक स्तर का एक अच्छा विद्यालय भी हैं। जिसके आँगन में खड़े घने पेड़ों के झुरमुट और बेल-पतों व् फूलों से यहाँ प्राकृतिक द्दश्य की स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती हैं। यहाँ शानदार बगीचा व् पेड़ भी लगाये जा रहे हैं। इस जीजी पाल पर एक खेजड़ी के पेड़ जिसमें जाल का पेड़ भी है के निचे पहले एक कच्चा चबूतरा था। जिस पर कुछ मिर्तियों आदि थी। आज से लगभग तीस-पैंतीस वर्ष पहले पतलियावास क्षेत्र के ही श्री नाथारामजी S/o चोथारामजी भाकरानी, जो स्वभाव से कुछ भोले मगर देवी के परम भक्त थे, वे यहाँ आकर एकान्त में बैठकर देवी-ध्यान करते और ईश्वर के नाम की माला जपते थे। उन्हें इस स्थान पर कुछ अलौकिक चमत्कारों का अनुभव हुआ। तब उन्हेंने यहाँ एक छोटा सा गुमटीदार मन्दिर बनाया। कहते हैं इस छोटे से प्राचीन मन्दिर से सटे खड़े खेजड़ी व् जाल के पेड़ के खोखल में हर माह की चाँदनी बीज को एक बड़ा नाग आता हैं, और देवी को शीश नवाकर अद्धशय हो जाता हैं। कहते हैं यहाँ धर्म परायण भक्त लोगों को एक दिव्य ज्योति जो बडेर के जोड़ से आरम्भ होकर जीजी पाल से डिंगड़ी माता के मन्दिर, फिर रनिया व् माटमोर के बाग़ होती हुई वापस श्री आईमाताजी के मन्दिर तक जाती हुई दिखाई देती है। इस ज्योति के दर्शन करने वाले बड़े भाग्यशाली माने जाते है। यह ज्योति हर किसी को नहीं दिखती है।

 

इस जीजी पाल पर जो पहले एक छोटा सा मन्दिर था, उस स्थान पर अब वार्ड वालों की तरफ से माँ श्री आईजी का एक भव्य मन्दिर बनाकर 15 दिसम्बर 1999 को इसकी भव्य प्राण-प्रतिष्ठा हजारों श्रद्धालुओं की महती उपस्थिति में हुई। प्रतिष्ठा पर्व पर 180 मण चीनी का हलुवा तथा 35 मण गुड़ की स्वादिष्ट लापसी महाप्रदास रूप में बनाई गई थी। इस मन्दिर में एक आकर्षक तस्वीर हैं, जिसमे माँ जीजी द्वारा किसानो को उपदेश देने के साथ मोजरी की रेत से जीजी पाल बनने के सुन्दर द्दश्य का चित्रांकन है। आज भी यह पाल अवशेष के रूप में विद्यमान हैं। माँ जीजी के इस दिव्य चमत्कार को आज भी लोग श्रद्धा से नतमस्तक नमन करते हैं। इस पाल पर स्थित श्री आईजी के मन्दिर पर लोग अपने बाल-बच्चों के झडूले केश आदि चढाते है और दाल-बाटी, चूरमा की मिटी प्रसादी भी चढाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मन्दिर पर व् पाल को साक्षी रखकर जो भक्तगण अपने सच्चे मन से कोई भी मन्नत या मुराद मांगता है, तो वह आवश्य ही पूरी होती हैं।

जीजी पाल भी बिलाड़ा नगर ला एक पावन दर्शनीय स्थल व् धार्मिक केन्र्द हैं। सदियों से आज तक मानवता अपनी श्रद्धा-भक्ति और आस्था के महकते पुष्प अर्पित करती आ रही हैं।

Recent Posts