हर्ष देवल का शिव मन्दिर

इस शिव मन्दिर ( हर्षदेवल ) का इतिहास चाहे जो भी कुछ भी हो, यह मन्दिर ( हर्षदेवल )का इतिहास इमारत दिन-प्रतिदिन खंडहर के रूप में बदल रही है। भारतीय इतिहास, धर्म एवं दर्शन की कहानी भारत के विभिन्न स्थानों पर बने हुए विशालकाय व वैभवशाली मंदिर बताते हैं। भारत में धर्म का इतिहास सदैव मंदिरों के साथ जुड़ा रहा है। भारत की राजनीति, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक प्रगति को अपने कलेवर में समेटे हुए ऐसे विशालकाय एवं वैभवशाली मंदिरों के साथ विशालतम साम्राज्यों के उत्थान एवं पतन की कहानी जुड़ी हुई है। ऐसे प्राचीन मंदिर भले ही आज जर्जर एवं खण्डहर की सी स्थिति में है मगर उनके साथ हिन्दू-धर्म की आत्मा जुड़ी हुई है। नालन्दा तक्षशिला पाटलीपुत्र रामेश्वर बेलूर बैराठ कांचीपुरम तंजौर जगना थपुरी काशी मथुरा विजयनगर सोमनाथ तिरुपति और देलवाड़ा इत्यादि स्थानों पर बने हुए विशालकाय प्राचीन मन्दिर शिक्षा, संस्कृति, धर्म-दर्शन,तत्वज्ञान,तथाज्ञान-विज्ञान के केंद्र विद्वानों पंडितों अबलाओं असहायों भक्तों के आश्रम स्थल और भारत की सभ्यता व संस्कृति के पोषक भी थे। स्थापत्य-कला के सुन्दर नमूने इन मन्दिरों में लोग आज भी भांति घंटिया टुनटुनाने, मूर्ति के सामने हाथ जोड़ने एवं प्रसाद पाने हेतु ही नहीं आते थे।मन्दिरों में में लोगों की श्रद्धा थी, क्योंकि यह मन्दिर ज्ञान-विज्ञान, धर्म व दर्शन के शिक्षा के केन्द्र भी थे। किसी ने सच ही कहा है :- देव जननी भारत-भू पर, सदियों से खड़े देवालय। कही राम का, कहीं कृष्ण का, तो कहीं बने हैं शिवालय ।। घर मंदिर से जुड़ी रही है, कथा, घटना और चमत्कार, धर्म, श्रद्धा-भक्ति के संग ये रहे सदा जीवन – आधार ! ईश्वरीय सत्ता के प्रति अपने ह्रदय में उमड़ी अपार श्रद्धा और भक्ति को मुहूर्त रूप देने के लिए मानव ने मंदिरों का निर्माण करवाया है और उसमें रखी मूर्ति को ही साक्षात् ईश्वर मानकर नित्य सांझ-सवेरे उसकी आराधना आदि करता है। इस प्रकार मंदिर हमारी आध्यात्मिक चेतना के भी केन्द्र होते हैं। देश के विभिन्न भागों में बने अनगिनत भव्य मंदिर सदियों से ही प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं धार्मिक चेतना को अक्षुण बनाए हुए हैं। जो मौन साधक के भाँति खड़े संपूर्ण मानव जाति को यह संदेश दे रहे हैं कि:-

अहं को त्याग,अणु से मित्रता कर लो, गगन को भूल जग को अंक में भर लो ।
इसी में हित निहित, मानव तुम्हारा है, झुको, झुककर मन्दिरो में पूजा अर्चन कर लो ।।

 

ऐसा ही एक प्राचीन मन्दिर ( देवल )है-  हर्षदेवल ‘ जीर्ण- शीर्ण-जर्जर और खण्डर रूप में खड़ा यह प्राचीन देवालय बिलाड़ा नगरके पूर्व में ६ कि.मी की दूरी पर पूर्व दिशा की और मुँह किये मानो सूर्योपासना करते हुए मूक भक्त की भाँति निश्चल भाव से खड़ा कोई सदियों पुरानी बात कह रहा है। कहते भी है-

हर्षादेवल रो मिन्दरियों,कैवे पुरानी बात । मानव-निर्मित इण देवल रा,नित उठ करां बखाण ।।

यह हर्षदेवल का मंदिर अपने आप में एक रहस्य है। इसका निर्माण कब, किसने और क्यों करवाया?यह भी अन्वेषण का एक गूढ़ विषय है । इसका नाम ‘ हर्षदेवल ‘ क्यों पड़ा? क्या दानवीर राजा हर्षवर्धन इसका कोई सम्बन्ध हैं या नहीं? यदि अनेक प्रश्न अपने आप में एक पहेली बने हुए है। सच ही है- कब बना, किसने बनाया, यह मन्दिर हर्षदेवल का। क्या मालूम इस मन्दिर से है कोई सम्बन्ध हर्षवर्धन का।। है प्रश्न अन्वेषण के ये, इतिहासकारों की चिंतन का।  कब सही उत्तर मिलेगा, मानव मन की जिज्ञासा का।। हर्षदेवल, बाणगंगा और लाम्बा गांव में बने देवल ( मन्दिरों )में सामंजस्य हैं, तीनों की बनावट स्थापत्य शैली का एक रूप है । अब प्रश्न उठता है, क्या इन तीनों का निर्माण एक ही समय में, एक ही व्यक्ति द्वारा हुआ? इसका उत्तर भी इतिहास की गर्भ में ही हैं। लोक कथाओं,किवदन्तियों, दंत कथाओं और जनश्रुतियों के अनुसार इस हर्षदेवल ( जो कि एक शिव मन्दिर है ) के बारे में जो जानकारी मिलती हैं, उसके अंतर्गत इस देवल ( मन्दिर ) के पास जो चौबीस घाट ( अब खंडहर रूप में ) बने हुए हैं, वे बगड़ावतों से सम्बन्धित है। बगड़ावत चौबीस भाई थे, उनकी रानियाँ एक दूसरी रानी से पल्ला भी भेंटना नही चाहती थी। इसलिए अलग-अलग घाट उन चौबीस रानियों के नहाने के लिए ही बनाए गए थे। लेकिन बगड़ावतों का इतिहास जो लक्ष्मी कुमारी चुंडावत का संकलन किया हुआ है, उससे यह मालूम होता है कि बागजी के चौबीस पुत्र थे, वे बगड़ावत कहलाए। वे गुर्जर थे, जो एक खानाबदोश धुमक्कड़ कौम थी। और पशु-पालन का काम करती थी। वे जहाँ पर भी चारगाह देखते, वहां अपना पड़ाव डाल देते थे। हो सकता है यहां रहते हुए बगड़ावतों ने ही चौबीस घाटों वाली बावड़ी और यह शिव मन्दिर बनाया हो।
कहते भी है –

चौबीस घाट अर बावड़ी, यह देवल भी साथ हैं । सम्भवतः इन्हें बनाने में, बगड़ावतों का हाथ है।।

एक किवदन्ती यह भी प्रचलित है कि वनवास के वक्त पाण्डव यहाँ पर रहे थे। यहाँ बहुत दूरी पर फैला हुआ एक तालाब था। कहते हैं जब एक बार बहुत पानी बरसा और पाण्डव यहाँ अपना वनवास बिता रहे थे। माता-कुन्ती बैठी-बैठी सूत कात रही थी। जब पानी बहुत चढ़ने लगा,तो माता कुन्ती ने अपने बलिष्ठ पुत्र भीम से तालाब कि पाल फोड़ने को कहा, तो भीम ने ठोकर से पाल फोड़ दी, जो सोलंकियों के अरठ के पास हैं। यहाँ एक बार फिर मानस-पटल पर यह प्रश्न उठता है कि क्या इस मन्दिर व चौबीस घाटों का निर्माण गुप्त रहते हुए पाण्डवों ने करवाया? यह भी ऐतिहासिक खोज का एक प्रशन है ।

 

बिना किसी चुना-सीमेन्ट व गारे का सहयोग लिये यह मन्दिर बनाया गया है कि देखने वाले दंग रह जाते हैं। स्तम्भ,खम्भों व मेहराबों पर इस प्रकार की बारिक खुदाई की गई हैं, जो उस समय उन्नत शिल्प व स्थापत्य कला का उदाहरण है।

 

चौबीस घाटों वाली बावड़ी भी अब पूरी तरह खंडहर व भग्नावस्था में हैं। चौबीस खंभों पर बना चौक, मुख्य मन्दिर में पत्थर का बना शिवलिंग- नंदी आदि हैं, जो अब खंडित अवस्था में हैं। पत्थरों पर की गई खुदाई उस समय के शिल्पकारों की दक्षता को दर्शाती हैं। मन्दिर के एक खंभे पर अस्पष्ट शिलालेख है,जिस पर संवत १२३३ और कुछ खुदा हुआ है। इस लेख से यें बातें मन मे आती है कि संवत् १२३३ में इसका निर्माण हुआ है, या मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हुई या इसका जीर्णोद्धार हुआ है, ये सभी बातें अस्पष्ट हैं।मन्दिर के आगे थोड़ी दूरी पर एक घना वट-वृक्ष है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे गांव उचियारड़ा के एक दानी- धर्म- प्रेमी लौहार भानाराम जी ने लगवाया था।इसे ‘ भान-बड़ ‘ के नाम से भी जानते है। जो आज भी राहगीरों, पशु-पक्षियों और यात्रियों को शीतल छाया दे रहा है।

कहा भी गया है:-
इस देवल के परागण में, हैंडपम्प अर मन्दिर हैं। भगवान शिव-माँ अम्बा के,पावन यह मन्दिर हैं।। दूर खड़ा वट-वृक्ष जो, शीतल छाया देता है। है भान-बड़ जो यात्री, पशु पक्षियों को राहत देता है।।

दानवीर हर्षवर्धन शिव और सूर्य का उपासक था। हर्ष गाँव मे बना ‘ हर्षदेवल ‘ भी एक शिव-मन्दिर ही है। तो क्या इसका कोई ‘ हर्षवर्धन ‘ से सम्बन्ध हैं? यह प्रश्न पुरातत्व विभाग के लिए भी एक खोज का विषय बन सकता है। दूसरी तरफ बागजी बगड़ावत ( गुर्जर ) के चौबीस पुत्र उनके चौबीस रानियाँ, चौबीस ही घाट और चौबीस ही खंभों पर बना मन्दिर का चौक, ये सभी बातें भी एक दूसरे से सम्बन्ध रखती हैं।

इस शिव मन्दिर ( हर्षदेवल ) का इतिहास चाहे जो भी कुछ भी हो, यह मन्दिर ( हर्षदेवल )का इतिहास इमारत दिन-प्रतिदिन खंडहर के रूप में बदल रही है। यदि समय रहते इस मन्दिर का जीर्णोद्धार व रख -रखाव नही किया गया ,तो न मालूम कितनी सदियों का गौरवशाली विरासत नष्ट हो जायेंगी। बिलाड़ा नगरी का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक साक्ष्य मिट जायेगा। सरकार और पुरातत्व विभाग को चाहिए कि वे शीघ्र ही इस तरफ ध्यान देकर आवश्यक कदम उठाएँ। शोधकर्ता इस प्रमाणिक इतिहास को अपने अन्वेषक और शोध से जनसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत करें।।

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