अठारहवें दीवान श्री हरिसिंह जी

जन्म – संवत् 1972 आसाढ़ सुद 1
पाट – संवत् 1976 भादवा सुद 11
विवाह – संवत् 1989 माह सुद 3
स्वर्गवास – संवत् 2003 आसोज सुद 3

दीवान प्रतापसिंहजी के स्वर्गवास के समय दीवान हरिसिंहजी मात्र 4 वर्ष के थे । बाल्यकाल में ही आपको दीवान की गद्दी पर बैठाया गया था। नाबालिग होने के कारण ठिकाना बडेर का कार्य कोर्ट ऑफ वार्डस के अधीन रहा। दीवान हरिसिंहजी की प्रारम्भिक शिक्षा बिलाड़ा में ही हुई थी। बाद में सन् 1925 में जोधपुर की महिला बाग स्कूल में दाखिला दिलाया गया। यह बात जब जोधपुर महाराजा को व कोर्ट ऑफ वार्डस के अधिकारियों को ज्ञात हुई तो उन्होंने देखा कि इस स्कूल की शिक्षा व वातावरण इस घराने के अनुकूल नहीं है। राजा-महाराजाओं वह बड़े ठाकुर लोगों के बच्चे के पढ़ने हेतु अजमेर मेयो कॉलेज था । अत: 1925 के अगस्त माह मैं दीवान हरिसिंहजी को अजमेर मेयो कॉलेज में दाखिला करवाया गया । आप एक मेधावी छात्र थे । मेयो कॉलेज में आप हमेशा हर कक्षा में प्रथम रहते थे । आपको घुड़सवारी का बहुत शौक था तथा पोलो के अच्छे खिलाड़ी थे। अजमेर मेयो कॉलेज से आपने डिप्लोमा की डिग्री सन् 1943 में हासिल की । जब बालिक हो गए तो आगे की पढ़ाई छोड़ बिलाड़ा पधार गये और अपना कामकाज देखने लगे। दीवान हरिसिंहजी का संवत् 1989 के माह सुद 3 को गुजरात के कंथारिया ग्राम के राजकंवर झालाजी के साथ हुआ था । विवाद के एक साल बाद संवत् 1990 के माह सुद 3 को जोधपुर महाराजा उम्मेदसिंहजी ने दीवान साहब को जोधपुर बुलाया और राईकाबाग पैलेस में परम्परानुसार मातमपुरसी की रस्म अदा की । खूब नजर निछरावल हुई और वापस बिलाड़े पधारें । दीवान हरिसिंहजी आई माता के अनंत भक्त थे । बड़े ही शांत व गंभीर प्रवृत्ति के थे । आपके दिल में हमेशा परोपकार की भावना रहती । आई माता की कृपा से आप वचन सिद्ध पुरुष थे । जो बात कहते वह हमेशा सच्ची होती थी । आई भक्त व अन्य लोग दीवान हरिसिंहजी को देव तुल्य पूजते थे ।आई माता की कृपा से संवत् 1991 के आषाढ़ वद 5 को आपके कुंवर नरेंद्रसिंहजी का जन्म हुआ । दीवान हरिसिंहजी ने सीरवी जाति के सुधार के कई कार्य किये थे । शिक्षा पर बहुत बल दिया था । सीरवी जाति के सुधार हेतु व शिक्षा हेतु आप सन् 1939 में ‘मारवाड़ सीरवी किसान सभा’ की स्थापना की थी । जिसका उद्घाटन कुंवर नरेंद्रसिंहजी के कर कमलों द्वारा करवाया गया था कुंवर नरेंद्रसिंहजी एक दिन बाल्यकाल में बाड़ी महल में खेलते हुये झरोखे से नीचे गिर गये । जिससे उनका स्वर्गवास हो गया । दीवान हरिसिंहजी के दिल पर इस घटना का बहुत आघात लगा‌ ।

दीवान हरिसिंहजी अपने अनुयाईयों की साल सम्भाल करने हेतु मारवाड़, मेवाड़, मालवा, निमाड़ का दौरा करते थे । दौरे पर पूरा लवाजमा साथ रहता था । कई घोड़े, ऊंट, नौकर-चाकर गांव के प्रतिष्ठित लोग साथ रहते थे । हर गांव में आपको बधावा कर आरती उतारकर बड़े आव आदर से प्रवेश करवाते थे । जाति सम्बंधी कठिन से कठिन मामले दीवान साहब सुलझाते थे । जिसे पूरा समाज सहर्ष मानता था । संवत् 1993 के जेठ सुद 5 को दीवान हरिसिंहजी ने बहुत बड़ा ज्याग किया था । जिसमें 11 सौ मण गुड़, 2 हजार मण गेहूं, 240 मण घी तथा अन्य सामग्री के साथ लाखों रुपये व्यय हुये थे । उस जमाने में चक्कियां नहीं थी अत: 200 औरतों ने 20 दिन तक हाथ चक्की से गेहूं का दलिया तैयार किया था तथा सैकड़ों आदमियों ने मिलकर बड़े बड़े कड़ाही में से एक बड़े होज में भर गया था । वो कढाह तथा होज व घी भरने की बड़ी-बड़ी टंकियां लोहे की आज भी देखने योग्य है। इस त्याग में आस-पास के गांव धुंवे बन्द ( किसी के घर चूल्हा नहीं जलना ) रहे । लाखो आदमी मालवा, गुजरात, निमाड़, गोड़वाड़, पश्चिमी राजस्थान से आये थे । बड़ा भारी मेला लगा था भोजन की व्यवस्था सुचारू रूप से की गई थी । किसी को खाने पीने सम्बंधी कोई शिकायत नहीं थी । लापसी की दो ट्रकों व बैल गाड़ियों में भरकर चलते हुये फावड़ों आदि से पूरसा जाता था । लोग थालियों की जगह कपड़े बिछा बिछाकर लापसी लेकर जाते थे । तीन दिन तक भोजन चलता रहा । संवत् 1993 में दीवान साहब ने जोधपुर, पाली के गांवों का दौरा किया ज्याग करने के बाद संवत् 1994 में मालवा, निमाड़ में मध्यप्रदेश में दोरा जती मालवा के हुकमा बाबाजी की देखरेख में संपन्न हुआ जिसमें प्रमुख धार, खारगोन, देवास, रतलाम जिले थे ‌। दौरे में 20 घोड़े 5 ऊंट, 2 बग्गी, 150 आदमी साथ रहते थे ।दीवान हरिसिंहजी के समय में भी कई गांवों की सीरवियों ने छोड़ाणा किया था ‌। जिसे दीवान साहब ने समझा-बुझाकर वापस बसाया था । इसी प्रकार संवत् 1996 में गांव गरनिया के सीरवी ठाकुर बालूसिंहजी से नाराज होकर गांव छोड़कर आई माता का पाट लेकर गांव राजादंड चले गये । इस पर ठाकुर साहब के अनुरोध पर दीवान साहब ने सीरवियों को समझा-बुझाकर वापस गांव गरनिया में लाकर बसाया और आई माता जी का पाट स्थापित किया ।

‘ श्री ’

ठाकर साहब राज श्री 105 श्री बालुसिंहजी साब कंवर साब श्री रामसिंहजी देव वचनांता ।

परगने जेतारण रे गांव परणियो सिवरी नाराज होयनै श्रीमाताजी रो पाट राजाडड ले गीया और श्री दीवान साहब रा हुक्म सूं मोती बाबो आयो, चोदरियो ने ठाकुर साब ने आपस को तनाजो मेटने श्री माताजी रो पाट पाछो दस्तुर गांव गरणिया में पाट आपन कीयो ने मारी तरफ सूं श्री माताजी रे केसर रो ध्या‌न मण 11) ग्यारह गरणीया तेल रो भेंट कियो । जीमेय सूं गंउ 5) साडी पांच मण गुजी 5 साडी पांच मण जुमले ईग्यारे गरणिया तोल सुं दीया जावसी मार गांव से सरवी आबाद रेवेला जब तक दिया जावसी ओ परवानो श्री जती बाबा जी भीकाजी रे सामने सो सनन रेवे । सम्वत् 1996 रा आसाढ़ वद 9 तारीख 11.06.39 दा कीसोरसिंह काम. ठा. गरणिया ।

एक बार दिनांक 26.12.25 को जोधपुर महाराजा उम्मेदसिंहजी और महारानी भटियानीजी बिलाडा पधारे थे । उस समय महाराज को गाजो बाजों से बधाकर लाया गया तथा बाड़ी महल में ठहराया । खूब आदर सत्कार किया । कई तरह के व्यंजन खाने में बनवाये । महाराज साहब बहुत खुश हुये और दीवान साहब को अपने सामने बराबर की कुर्सी पर बैठाया और अच्छा कुरब दिया था । दीवाना हरिसिंहजी ने संवत् 1997 में आई माता के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था । मंदिर में बड़ी 8 लोहे की गाटरे डलवाकर छीणे डलवाई तथा प्रवेशद्वार बहुत ही खूबसूरत संगमरमर का बनवाया ।

आई माता की कृपा से संवत् 1999 पौह सुद 11 को आपके पुत्र रत्न हुये । जिनका नाम माधवसिंहजी रखा । आई माता की भक्ति करते हुये संवत् 2003 के आसोज सुदी 3 को आपका स्वर्गवास हो गयां स्वर्गवास के 4 माह बाद वे दीवान माधवसिंहजी कुंवर गोपालसिंहजी का जन्म हुआ था ।

यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए श्री आई माताजी का इतिहास नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पेज दृश्य न: ८९ से ९७ पुस्तक लेखक – स्वर्गीय श्री नारायणरामजी लेरचा

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