बारहवें दीवान श्री अनोपसिंह जी

जन्म – संवत् 1855 काती वद 5
पाट – संवत् 1858 वैशाख वद 7
स्वर्गवास – संवत् 1860

दीवान उदेसिंहजी के स्वर्गवास के समय अनोपसिंहजी मात्र तीन वर्ष के थे परम्परानुसार अनोपसिंहजी को संवत् 1858 के वैशाख वद 7 को दीवान की गद्दी पर बैठाया गया । लेकिन आई माता को कुछ और ही मंजूर था ‌‌। केवल दो वर्ष बाद अर्थात् दीवान अनोपसिंहजी की आयुब 5 वर्ष हुई तो काल के क्रुर हाथों ने अनोपसिंहजी को हमसे छीन लिया दीवान अनोपसिंहजी के कार्यों की भविष्य में बहुत आशाएं थी । लेकिन आई माता को यही मंजूर था । संवत् 1807 में आपका स्वर्गवास हो गया । उस समय आई माता के नो भक्तों ने अनोपसिंहजी के पीछे (स्वर्गवास का समाचार सुनते ही शरीर छोड़ना) आत्मसमर्पण किया । जिनका विवरण ठिकाना बडेर बिलाड़ा की बहियों के अनुसार निम्न है –

2 आदमी बडेर के ।
3 आदमी बिलाड़ा के नया बास के ।
3 आदमी जांजणवास के
1 बडारन चन्द्रजोत ।

यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए श्री आई माताजी का इतिहास नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पेज दृश्य न: ८९ से ९७ पुस्तक लेखक – स्वर्गीय श्री नारायणरामजी लेरचा

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