उन्नीसवें दीवान श्री माधवसिंह जी

उन्नीसवे व वर्तमान दीवान माधवसिंहजी

दीवान हरिसिंहजी के स्वर्गवास के समय माधवसिंहजी मात्र 4 साल के थे । अतः नाबालिक माधवसिंहजी को संवत् 2003 में आसोज सुद 3 को दीवान की गद्दी पर बैठाया गया तथा ठिकाना बडेर का कामकाज कोर्ट ऑफ वांडर्स की देखरेख में रहा । दीवान माधवसिंहजी जब बालिक हुये तो आजकल के जमाने अनुसार राजनीति में हिस्सा लेने लग गये और कांग्रेस के कर्मठ सदस्य बन गये तथा सोजत विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गये । लगातार पांच बार जीतते रहे । इस बीच राजस्थान के इंदिरा गांधी नहर व चिकित्सा मंत्री भी रहे । 1989 के चुनाव में अपने भाग नहीं लिया । दीवान साहब जी का जन्म पोष शुक्ल 11 संवत् 1999 में हुआ । संयोग ही की बात है कि आई माता ने अपना पहला शिष्य जाणोंजी के पुत्र माधवजी को बनाया था और पांच सौ वर्षों बाद घटनाचक्र ऐसा चला कि दीवान माधवसिंहजी पुन: इस दीवान वंश के दीवान बने । भारत देश सन 1947 में आजाद हुआ । धर्म का प्रतिद्वंदी विज्ञान अपनी पराकाष्ठा पर चल रहा है इस युग में किसी को धर्म के बारे में समझाना महज एक पाखंड सिद्ध होता । इस युग में दीवान माधवसिंहजी ने समय के बदलते प्रभाव में इंजीनियरिंग कॉलेज पिलानी से इन्जीनियरिंग की डिग्री हासिल कर एक वर्ष के लिए जापान जाकर अपनी योग्यता साबित की, पर विधि का विधान अनूठा है । समय ने ऐसी करवट ली कि दीवान माधवसिंहजी को नहीं चाहते हुए भी राजनीति में प्रवेश करना पड़ा । एक धर्म के धर्मगुरु होते हुए भी उन्होंने यह पाया कि राजनीति के बिना दूरदराज में बैठे हुए आई भक्तों को मैं कोई भी मदद नहीं कर सकता‌ । इसलिए सन् 1977 में आपने राजनीति में प्रवेश किया । विज्ञान व बुद्धि के प्रबल विकास के इस युग में धर्म की भावना जो आई पंथ के लोगों में आपने विकसित की उसकी कोई मिसाल नहीं हे । कुछ लोगों का मानना है कि धर्म व राजनीति साथ नहीं चलनी चाहिए लेकिन दीवान माधव सिंह जी ने यह सिद्ध कर दिया कि व्यक्ति आई माता जी को अपने हृदय में धारण कर यदि शुद्ध भावना से कोई भी कार्य करता है वही धर्म है ।

राजनीति + धर्म = धर्म सेवा
राजनिति – धर्म = स्वार्थ सेवा

इस दीवान वंश की 19 वीं पीढ़ी में दीवान माधवसिंहजी ने मारवाड़ के ढ़ाई घर की कहावत को आगे बढ़ाकर राजस्थान का एक घर बिलाड़ा को साबित कर दिया । राजस्थान के प्रजातंत्र के इतिहास में दीवान साहब माधवसिंहजी का अपना एक विशिष्ट स्थान है जो जग जाहिर है । किसी कवि ने कहा है –

मरूधर थारे देश में, आईजी माधव रूप में आया ।
सभी भक्ता री सेवा किनी, सब रा मन में भाया ।।

।। इति ।।

दीवान परिवार की वंशावली के बारे में कवियों में निम्न प्रकार लिखा है।

।। छप्पय ।।

धुहड़ चन्द अजेस, अप्पे वापल बगसिय अस ।
धारड वसतो लखो, जाण माधव गायेन्द जस ।।
लख क्रम रोहिताश्व, लिखम राजड़ सिधा लग ।
किय भगवान किल्याण, पदम हरिदास प्रभाजग ‌।।
ऊदल अनोप लालो शिवो, थिर गादी लिछमण थपे ।
दिस आठ प्रसिध सगतो सुदत, तिकण पाठ पातल तपे ।।

इसके बाद प्रतापसिंहजी व हरिसिंहजी फिर माधवसिंहजी वर्तमान में हैं । गांव बोरुंदा के चारण कवि देथा जुगतिदान जी द्वारा रचित फागण वद 5 रविवार संवत् 1963 ।

जाणो मधो गोयन्द लाखो क्रमसी जसलेता ।
रोहितास लिख्म राज हरक भगवान हुवेता ।।
कले पदम लोक्रीम हरि ऊदल हदहोतां ।
आखां फेर अनोप लाल देता अरिलाता ।।
शिवदान लछा सगतेस रे थिर गुण आदू थापसी ।
दईवाण बिलपुर में दिपे पाट तिका प्रतापसी ।।
राज सम्भालो ने सुजस, नगर बील निज राज ।
भारमल के सचित भणि, सहुकृत राज सुकाज ।।
कमधजली रवि वंश में, धुहड़ राव सीधर ।
धूहड़रे चडेस भी, ताहि चन्द्र रनवीर ।।
ताही अजेसी सुत भयो, बापलता सुत बग ।
बग सुत तवादो भयो, ताके धारउ अंग ।।
धारड सुत बसतो भणे, बसता सुत लाखेस ।
लाखा सुत जाणो भयो, जाणा सुत माधेस ।।

इसी प्रकार कई कवियों ने कई प्रकार की कविताएं दोहे छप्पय आदि दीवान परिवार के बारे में लिखें जो बडेर ठिकाना के पुराने रिकॉर्ड में मौजूद हैं । दीवान परिवार ने जन सेवा के बहुत से कार्य किए थे । लोग आज भी दीवान परिवार के किये गये कामों को याद करते हैं तथा दीवान साहब को आज भी आई माता के रूप में मानकर पूजा करते हैं । दीवान परिवार हमेशा ही गरीबों की सेवा, निसहायों की सेवा में लगे रहते हैं ।

यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए श्री आई माताजी का इतिहास नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पेज दृश्य न: ८९ से ९७ पुस्तक लेखक – स्वर्गीय श्री नारायणरामजी लेरचा

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