सोलहवें दीवान श्री शक्तिदान जी

जन्म – संवत् 1913 माघ वद 2
विवाह – संवत् 1939
पाट – संवत् 1945
स्वर्गवास – संवत् 1961 पोह वद 12

दीवान शक्तिदानजी 32 वर्ष की आयु में दीवान की गद्दी पर विराजमान हुवे थे । उस समय जोधपुर के महाराजा सरदारसिंहजी थे । महाराजा सरदारसिंहजी दीवान घराने की स्वामी भक्ति के कारण बहुत खुश थे । जब शक्तिदानजी दीवान की गद्दी पर विराजे तो उस समय महाराजा सरदारसिंहजी बिलाड़ा पधारे और परम्परानुसार मातमपुरसी की रस्म अदा की थी । खूब नजर निछरावल हुई तथा सिरपाव दिया था । दीवान शक्तिदानजी आईमाता के परमभक्त थे तथा दृढ़ प्रतिज्ञ इतने थे कि जो कार्य मन में सोचते उसे अवश्य पुर्ण करते थे । आपको भवन बनवाने का बहुत शौक था । इसी शौक को पुरा करने के लिए आपने होशियार व कलाकार कारीगरों को आस पास से बुलवाया और एक अति सुंदर महल का निर्माण करवायां जिसका नाम बाड़ी महान रखा गया जो आज भी अपनी शान को बनाये हुवे विद्यमान है जो देखने योग्य भी है बाड़ी महल की खूबसूरती को देखकर एक कवि ने कहा था ।

दखल पड़े सुण दोखियां, आखा यह लहशेश ।
सहल किया सब वहे सुखी, बाड़ी महल वशेश ।।

जिस समय महाराजा सरदारसिंहजी बिलाड़े पधारे तो उन्हें बाड़ी महल में ठहराया जाता थां महाराजा साहब इस महल की बनावट व साज सज्जा से व कारीगरी से बहुत खुश हुये थे । एक बार महाराजा साहब जब बिलाड़ा पधारे तो उन्हें बाड़ी महल में ठहराया और विभिन्न प्रकार की भोजन सामग्री बनवाई गयी । उस भोजन में एक दो व्यंजन दीवान साहब की रानी भटयाणी जी ने अपने हाथ से बनाये थे । उस व्यंजन के खाने से महाराजा साहब बहुत खुश हुवे । और कहा की मैंने इतना स्वादिष्ट भोजन पहले कभी कही नहीं किया । रानी भटियाणी जी की खूब तारीफ की । रानी जी पाक शास्त्र में निपुर्ण थी ।

दीवान शक्तिदानजी अति बुद्धिमान व दूर दृष्टता के धनी थे । आपके विषय में एक कवि ने कहा था ।

शाम धरम स्वछा सरस, तछ कच्चा नहलेस ।
अच्छा – अच्छा एकटा ( थामे ) सच्चा गुण सगतेस ।।
अत विद्या चित ऊमदा दाखे धिन – धिन देस ।।
शाम धरम अर वचन सिध, सत सानग सगतेस ।।

संवत् 1947 गांव बहेड़ा के ठाकुर श्री रूघनाथसिंहजी के पट्टा के गांव दादाई के सीरवियों ने आपसी रंजिस के कारण दादाई से छोड़ाणा कर आड़ के रूप में पत्थर का नया गाढ़ दिया और गांव छोड़ कर अन्यत्र चले गये । ठाकुर साहब ने सीरवियों को बहुत समझाया लेकिन वे नहीं माने । गांव के समस्‍त जमीन बिना कास्त के पड़ी रह गई । इस ठाकुर साहब की आमदनी पर बुरा असर पड़ा । तब ठाकुर रूघनाथसिंहजी ने दीवान शक्तिदानजी से निवेदन किया कि सीरवी सिर्फ आपका कहना मानते है सो आप कृपा कर सीरवियों को समझा बूझा कर वापिस गांव दादाई में लाकर बसावें । इस पर दीवान साहब ने गांव दादाई के गये हुए सिरवियों को समझा बुझा कर वापिस गांव दादाई मे लाकर बसाया । जिससे पुन: दादाई की जमीन पर कास्त होने लगा तथा ठाकुर रूघनाथसिंहजी ने आई माता के धुप दीप हेतु 5 मण जव हर साल भेंट करने का परवान लिखा ।

।। श्री परमेश्वरजी सहाय छे ।।

मोहर

।। श्री राम जी सत छे ।।

स्वारूप श्री बिलाड़ा सुभ सुथानेर सरब आपेमा श्री दीवान जी सगतीदानजी जोग्य बहेड़ा थी राणावत रूघनाथ सिग लिखावत जै श्री कुंवार श्री नाथ दीवसी जी अठारा समाचार श्री जी रे तेज प्रताप सूं कर भला छे । राज रा सदा भला राखावो जिण था । विशेष रखावसी अप्र म्हारे पटा रो गांव दादाई रा चौधरीया उसलो कियो ने गदोतरो रोप दियो ‌। तिण री इजाजत राज दिराई ने गदोतरो उखेलायो तीण सूं श्री आईजी माराज रे कोठार दादाई रा हासल ममउज 5 अखरे जब मण पांच दादाई रे मापरा भेट कीया जाही । उवरसी वरसी दादाई रा हासल सी पछे दिया जावसी । इण में कोई तार रा रोक रंक राखसी नहीं अठासी हुकम की जरूर की लिखावसी अठे राज रो ठिकाणो है। संवत् 1947 रा जेठ सुद 15 ।

आपका संवत् 1961 के पोह वद 12 को स्वर्गवास हो गया ।

यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए श्री आई माताजी का इतिहास नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पेज दृश्य न: ८९ से ९७ पुस्तक लेखक – स्वर्गीय श्री नारायणरामजी लेरचा

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