तेरहवें दीवान श्री लालसिंह जी

जन्म – संवत् 1802
पाट – संवत् 1860
स्वर्गवास – संवत् 1869

जब दीवान अनोपसिंहजी कम आयु मैं स्वर्ग सिधार गये तो दीवान की गद्दी पर अनोपसिंहजी के चाचा लालसिंहजी (उदेसिंहजी के भाई जो हरिदासजी के पुत्र थे ।) बैठे । दीवान लालसिंहजी आई माता के परम भक्त थे। उस समय जोधपुर के महाराजा मानसिंहजी थे । महाराजा लालसिंहजी से बहुत खुश थे। आई माता के अनुवाई ( डोरा बंध ) लालसिंहजी का आदर करते थे । दीवान साहब भी हमेशा डोरा बंधो के हित की बात सोचते थे तथा सुख दुख में साथ देते थे। दीवान लालसिंहजी ने भी कई बार महाराजा के साथ युद्ध में वीरता का परिचय दिया था। महाराजा भी दीवान घराने की स्वामी भक्ति से बहुत खुश थे। एक बार महाराजा के साथ आप पीपाड़ शहर पधारे थे‌। वहां पर बीकानेर के महाराजा भी आये हुए थे। बीकानेर महाराजा ने दीवान लालसिंहजी को अपने डेरे पर बुलाया और खूब आदर सत्कार किया । जोधपुर व बीकानेर के महाराजाओं को दीवान लालसिंहजी की वीरता व स्वामी भक्ति पर बड़ा गर्व था । दीवान लालसिंहजी दीवान की गद्दी पर थोड़े समय ही रहे थे । संवत् 1869 में मामूली रोग से आपका स्वर्गवास हो गया था । दीवान लालसिंहजी को आई माता के डोराबंद आई माता का रूप समझकर पूजते थे । भक्तों की आप पर अटूट श्रद्धा थी इसी कारण आपके स्वर्गवास पर करीब बाईस डोराबन्दों ने आपके पीछे आत्मसमर्पण किया था जिनका विवरण निम्न है।

मोची भीलीया री मां (2) चोथरावास री सीरवण (3) उचियाड़ा री सीवरण (4) दली चांदावत (5) कोल चौधरी री काकी (6) एक कुमार (7) केसो सीरवी बडेर रो (8) गोड़वाड़ रो महाजन (9) सरगरो नेतियो (10) दो सरगरिया (11) मेगवाल भोजियो ने उणरी बहु (12) दो जाणूंदा रा (13) नगो सीरवी (14) दलो‌ सीरवी (15) दो आदमी किशनपुरा रा (16) धारमो सीरवी (17) देदी सीरवी गांव झूठा री (18) रतनो सीरवी ने रतना री काकी । लालसिंहजी के पुत्र नही होने के कारण शिवदानदासजी को दीवान की गद्दी पर बैठाया था ।

यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए श्री आई माताजी का इतिहास नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पेज दृश्य न: ८९ से ९७ पुस्तक लेखक – स्वर्गीय श्री नारायणरामजी लेरचा

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