चौदहवें दीवान श्री शिवदान सिंह जी

जन्म – संवत् 1852
विवाह – संवत् 1868
पाट – संवत् 1869
स्वर्गवास – संवत् 1901

दीवान लालसिंहजी के कोई पुत्र नहीं होने के कारण उनके स्वर्गवास के बाद पदमसिंहजी खींवराजजी जे हरिदासजी के भाई थे। उनके पुत्र शिवदानदासजी जो लालसिंहजी के चाचा के पुत्र (चचेरे भाई) को दीवान की गद्दी पर संवत् 1869 में बैठाया गया। दीवान शिवदानदासजी ने दीवान की गद्दी पर बैठते ही सर्वप्रथम दीवान लालसिंहजी के पीछे बहुत बड़ा ज्याग किया थां जिसमें लाखों रुपए खर्च हुवे और लाखों लोग इकट्टे हुवे थे। दूर दूर से मालवा, गोड़वाड़ आदि से खुब संख्या में डोरा बंद व अन्य लोग आए थे। उन दिनों जोधपुर के महाराजा पदमसिंह थे। जोधपुर महाराजा स्वयं बिलाड़ा पधारे और परम्परानुसार मातम पुरसी की रस्म अदा की थी।

दीवान शिवदानदासजी आई माता के भक्त थे। आई पंथ के डोरा बन्दों के सुख-दुख में पूर्ण सहायता करते थे। आई पंथ के प्रचार व डोरा बन्दों की साल सम्भाल करने हेतु मारवाड़ मेवाड़ व मध्य प्रदेश का दौरा किया करते थे। एक बार संवत 1897 में गांव सेदरियां के ठाकुर साहब और वहां के सीरवियों के आपसी मनमुटाव हो जाने से सभी सीरवी गांव छोड़कर चले गए थे। वहां की खेती बाड़ी ठप्प होने से ठाकुर साहब के खजाने पर बुरा प्रभाव पड़ा। उसी समय सेदरिया के तत्कालीन ठाकुर पेमसिंह बिलाड़ा आकर दीवान शिवदानदासजी को हकीकत से अवगत कराया और निवेदन किया आप सीरवियों को मना समझा कर पुनः गांव सेदरिया में बसावें । इस पर दीवान साहब ने सब सीरवियों को समझा-बुझाकर गांव में पुन: बसाया । सीरवी लोग हमेशा दीवान साहब की बात मानते थे। इस पर ठाकुर साहब ने दीवान साहब को आई माता के धूप दीप हेतू एक बेरा भेंट किया था । जिसका परवाना ।

।। श्री माताजी ।।

सर्व श्री ठाकरो श्री पेमसिंहजी आधीया आईदानजी हलतो जी गांव सेदरिया रा खेड़े सोदरी लागा ने बसावो थो। श्री दीवाण जी शा 1897 रा म्हा वद 13 पदारिया तरे कोसीटो सोर्ठ री खारसीयो सडायो तरगरी गुगरी 9 सेर की दी त्यारी दीनो जावसी वरस वरस को सीटो बेसी तर दीधो जावसी । कोसीटो 1 दीधी जावसी । दा: साभा कसारा छे राजी खुसी सुलख दिनों छे । डाणे पेसो श्री माताजी सु वे मुख होसी । साख 1 बुसी रो पंसेरी 1 दा: हकमा रा छे । चोधरीयो री क्या सूं गालीयो। दीवान शिवदानदासजी के एक ही पुत्र थे । जिनका नाम लक्ष्मणसिंहजी था । संवत् 1901 में दीवान शिवदानदासजी का स्वर्गवास हो गया था।

यहां पर संक्षिप्त जानकारी लिखी गई हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए श्री आई माताजी का इतिहास नामक पुस्तक ( बिलाडा़ मंदिर में उपलब्ध है ) पेज दृश्य न: ८९ से ९७ पुस्तक लेखक – स्वर्गीय श्री नारायणरामजी लेरचा

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